नई दिल्ली: भारत के हजारों विद्यार्थी हर वर्ष मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेशों का रुख करते हैं । इसका एक मुख्य कारण तो यह है कि कुछ देशों में एमबीबीएस की डिग्री भारत के मुकाबले कम खर्चे पर हासिल की जा सकती है । हालांकि, एक तथ्य यह भी है कि विदेश के मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश पाना भी भारत के मुकाबले आसान है जहां सीमित सीटों के लिए काफी ज्यादा प्रतिस्पर्धा होती है । संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि विदेश जाने वाले 90 मेडिकल स्टूडेंट्स वो होते हैं जो नीट क्लियर नहीं कर पाते हैं । हालांकि, उन्होंने कहा कि इस पर बहस करने का सही वक्त अभी नहीं है ।
विदेश जाने वाले 60% भारतीय पहुंचते हैं ये तीन देश मेडिकल की पढ़ाई के लिए बाहर जाने वाले 60% भारतीय स्टूडेंट्स चीन, रूस और यूक्रेन पहुंचते हैं । इनमें भी अक्सर करीब 20% अकेले चीन जाते हैं । इन देशों में एमबीबीएस के पूरे कोर्स की फीस करीब 35 लाख रुपये पड़ती है जिसमें छह साल की पढ़ाई, वहां रहने, कोचिंग करने और भारत लौटने पर स्क्रीनिंग टेस्ट क्लियर करने का खर्च, सबकुछ शामिल होता है । इसकी तुलना में भारत के प्राइवेट कॉलेजों में एमबीबीएस कोर्स की केवल ट्यूशन फीस ही 45 से 55 लाख रुपये या इससे भी ज्यादा पड़ जाती है ।
हर वर्ष करीब 25 हजार मेडिकल स्टूडेंट्स जाते हैं विदेश अनुमान है कि 20 से 25 हजार मेडिकल स्टूडेंट्स हर वर्ष विदेश जाते हैं । भारत में मेडिकल की पढ़ाई के लिए NEET एंट्रेंस एग्जाम पास करना होता है । यहां हर वर्ष सात से आठ लाख स्टूडेंट्स NEET क्वॉलिफाइ करते हैं । लेकिन विडंबना देखिए कि देशभर में मेडिकल की सिर्फ 90 हजार से कुछ ही ज्यादा सीटें हैं । इनमें आधे से कुछ ज्यादा सीटें सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हैं जहां से पढ़ाई सस्ती है लेकिन वहां एडमिशन तभी मिल सकता है जब नीट में बेहतरीन स्कोर मिले । प्राइवेट कॉलेजों की सरकारी कोटा वाली सीटों में एडमिशन के लिए भी नीट में हाई स्कोर हासिल करना होता है । अगर स्कोर कम है तो प्राइवेट कॉलेजों में सरकारी कोटा सीटों पर एडमिशन नहीं हो पाता है और मैनेजमेंट कोटे से एडमिशन की फीस बहुत ज्यादा हो जाती है । भारत में मैनेजमेंट कोटे से मेडिकल की पढ़ाई बहुत महंगी
देशभर के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में मैनेजमेंट कोटा की सीटें भी करीब 20 हजार के आसपास ही हैं । इनमें भी सैद्धांतिक तौर पर अप्रवासी भारतीयों के लिए एनआरआई कोटा सीटें होती हैं, लेकिन उनकी फीस भी काफी ज्यादा होती है । मैनेजमेंट और एनआरआई कोटा की फीस ही करीब 30 लाख रुपये से लेकर1.20 करोड़ रुपये तक हो जाती है जिसमें 4 से 5 वर्ष का कोर्स कवर होता है । साल दर साल इसका 14 से 20 प्रतिशत अन्य मदों में खर्च होता है । कोर्स पूरा करने के बाद किसी अस्पताल में एक वर्ष का इंटर्नशिप करना पड़ता है । देश में हर साल लाखों छात्र NEET की परीक्षा देते हैं । इनमें से कई कटऑफ लिस्ट में आ जाते हैं लेकिन उन्हें सरकारी मेडिकल कॉलेज में जगह नहीं मिलती है । ऐसे छात्रों को डॉक्टर बनने का सपना पूरा करने के लिए निजी मेडिकल कॉलेजों में एक करोड़ रुपये से अधिक फीस चुकानी पड़ती है । लेकिन हर कोई इतनी फीस चुकाने में सक्षम नहीं होता है और उनका डॉक्टर बनने का सपना अधूरा ही रह जाता है । सरकारी कॉलेजों में एडमिशन दिलाने के नाम पर इनमें से कई छात्र ठगी का शिकार हो जाते हैं ।


इनमें से कई छात्र यूक्रेन, रूस, फिलीपींस और यहां तक कि बांग्लादेश जैसे देशों का रुख कर रहे हैं । भारत की तुलना में इन देशों में डॉक्टरी की पढ़ाई का खर्च बहुत कम है । इस बात का कोई सटीक आंकड़ा नहीं है कि देश में अंडरग्रेजुएट लेवल पर मेडिकल की कितनी सीटें हैं । कोचिंग इंस्टीट्यूट्स के मुताबिक देश के सरकारी कॉलेजों में अंडरग्रेजुएट लेवल पर सीटें हैं । इनमें पांच साल के एमबीबीएस कोर्स के लिए फीस 1 लाख रुपये से कम होती है ।
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देश में प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों और डीम्ड युनिवर्सिटीज में सीटें हैं । ये इंस्टीट्यूट्स सालाना 18 लाख से 30 लाख रुपये तक फीस चार्ज करते हैं । पांच साल के कोर्स के लिए यह राशि 90 लाख से1.5 करोड़ रुपये तक होती है । देश में मेडिकल की करीबन सीटों के लिए से अधिक छात्र से परीक्षा देते हैं । कोचिंग के लिए भी छात्रों को लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं । तमिलनाडु सरकार द्वारा गठित एक समिति के मुताबिक कोचिंग के लिए समृद्ध परिवारों के छात्र 10 लाख रुपये तक खर्च करते हैं ।
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यही वजह है कि बड़ी संख्या में भारतीय छात्र डॉक्टर बनने के लिए विदेशों का रुख कर रहे हैं । यूक्रेन, रूस, किर्गीजस्तान और कजाकस्तान इन छात्रों का पसंदीदा ठिकाना है । अब बड़ी संख्या में भारतीय छात्र फिलीपींस और बांग्लादेश का भी रुख कर रहे हैं । बांग्लादेश में डॉक्टर बनने का खर्च 25 से 40 लाख रुपये है । फिलीपींस में एमबीबीएस कोर्स का खर्च 35 लाख और रूस में 20 लाख रुपये है । उसमें हॉस्टल का खर्च भी शामिल है ।
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सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यूक्रेन में 18 हजार से ज्यादा भारतीय छात्र-छात्राएं पढ़ाई करते हैं । इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि वहां मेडिकल में भारत जैसी गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा नहीं है । यूक्रेन की मेडिकल डिग्री की मान्यता भारत के साथ-साथ डब्ल्यूएचओ, यूरोप और ब्रिटेन में है । यानी यूक्रेन से मेडिकल करने वाले छात्र दुनिया के किसी भी हिस्से में प्रैक्टिस कर सकते हैं । यूक्रेन के कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई की सालाना फीस 4-5 लाख रुपये है जो कि भारत के मुकाबले काफी कम है ।
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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों के मुताबिक 1000 लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए लेकिन भारत में 1511 लोगों पर एक डॉक्टर है । महामारी के इस दौर में डॉक्टरों की यह कमी भारत को भारी पड़ सकती है । WHO के मुताबिक की आबादी पर44.5 प्रोफेशनल हेल्थ वर्कर्स की जरूरत है । इस मानक को पूरा करने के लिए भारत में कम से कम 18 लाख डॉक्टरों, नर्सों और मिडवाइफ की जरूरत है ।
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यूक्रेन में पढ़ाई से 6 साल में हो मिल जाती है MBBS की डिग्री
फॉरन मेडिकल ग्रैजुएट लाइसेंसिएट रेग्युलेशंस के नए नियमों के मुताबिक, कोई स्टूडेंट एमबीबीएस का कोर्स 10 वर्षों में पूरा कर सकता है । एमबीबीएस के लिए कम-से-कम4.5 वर्ष का कोर्स वर्क होता है और दो वर्ष का इंटर्न-एक वर्ष उस देश में जहां से कोर्स पूरा किया और एक वर्ष भारत में । यूक्रेन में एमबीबीएस की डिग्री छह वर्षों में मिल जाती है ।